शुक्रवार, 23 अप्रैल 2010

निशा

उन्हें मित्र कहूं या अपनी वरिष्ठ सहपाठी...सहयोगी... कुछ समझ में नहीं आता.....शायद इस बारे में कभी सोचा नहीं...या फिर सोचने कि जरुरत ही नहीं पड़ी.....मुझसे बहुत बार कविताये सुनने कि ख्वाहिश जाहिर कि लेकिन यह कभी संयोगवश संभव नहीं हो पाया....मेरे ब्लॉग पर कविताये पढ़ी...और भी बहुत सारे ब्लॉग देखे...पढ़े....उसके मन में भी ब्लॉग बनाने कि इच्छा थी लेकिन पहाड़ जैसा प्रश्न सामने था....'क्या लिखूं'.
           आज अचानक ही उनका ब्लॉग देखता हूँ और चार पोस्ट आँखों के सामने छलक पड़ती हैं...
        क्या कुछ लिखा है.. अच्छा है या नहीं....आप खुद देखें और इस 'छोटी सी बच्ची'  (शायद ये शब्द उपयुक्त है) को देखें कि वह कितनी बड़ी हो गई है....
www.shyamanisha.blogspot.com


मंगलवार, 13 अप्रैल 2010

फैशन शो

कल शाम टीवी पर 
फैशन शो देख लिया उसने 
तब से मेरी बच्ची 
चलने वाले 
खिलौने मांगती है. 

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