गुरुवार, 2 सितंबर 2010

बंटवारा

पहले धरती 
फिर आकाश 
अब ईश्वर भी 
सब यहाँ 
बंटा हुआ. 
हर सपना 
हर आशा 
हर सच 
सब बंटा हुआ. 
इन्सान
रिश्ते 
भाव 
सब बिखरे-बिखरे. 
मैं - तुम 
और यहाँ - वहाँ की 
जद्दोजहद में 
बंटने लगी है अब 
सूखे होंठों की प्यास 
आँखों की आस 
और 
मन का विश्वास 
अब तो 
तुमने 
मैंने 
मिलकर 
रोटी और पानी के लिए 
बाँट दिया 
रोटी और पानी को. 

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