snehi
शनिवार, 23 जुलाई 2011
शुक्रवार, 22 जुलाई 2011
रविवार, 13 मार्च 2011
गुरुवार, 2 सितंबर 2010
बंटवारा
पहले धरती
फिर आकाश
अब ईश्वर भी
सब यहाँ
बंटा हुआ.
हर सपना
हर आशा
हर सच
सब बंटा हुआ.
इन्सान
रिश्ते
भाव
सब बिखरे-बिखरे.
मैं - तुम
और यहाँ - वहाँ की
जद्दोजहद में
बंटने लगी है अब
सूखे होंठों की प्यास
आँखों की आस
और
मन का विश्वास
अब तो
तुमने
मैंने
मिलकर
रोटी और पानी के लिए
बाँट दिया
रोटी और पानी को.
गुरुवार, 29 जुलाई 2010
पिता
याद कर रहा हूँ मैं
उस भारी-भरकम सी आवाज़ को
जिसे सुन नहीं रहता था कोई संशय
और कभी-कभी जिसने
लगाया था अंकुश मेरी अति चंचलता पर.
याद आई हैं मुझे
वो मोटी, खुरदरी-सी ऊँगलियाँ
अहसास था जिनमे
पूर्णता का.
उनकी एक छुअन से ही
हमेशा मेरा डर
होता रहा दूर.
महसूस करता हूँ मैं
उन भारी से क़दमों की आहट को
जो चलते थे जब मेरे साथ
तब मेरे लिए
हो जाती थी समतल
ऊबड़-खाबड़ जमीन.
दिख रहीं हैं मुझे
वो हल्का-सा पीलापन लिए
वृद्ध हो चुकी आँखें
जो दिखाती थीं, उस घने काले बदल के पीछे
छुपी हुई है, एक चांदी की उजली किरण
जब देखता हूँ इन चमकते
आसमानी तारों को
फीके लगते हैं मुझे
क्योंकि, मोतियों से पूर्ण होने पर भी
इस सीप में सदा छाया रहता है, सूनापन.
इस विशाल सीप से
नहीं निकल पाते कभी, नेह के मोती.
सोचता हूँ
वरदान में नचिकेता ने
यों ही नहीं माँगा ये सब
क्योंकि मुक्ति सुख का नाम है
और इससे बड़ा सुख
नहीं है किसी दुसरे लोक में.
एक विशालता, और सारा सुख जगती का
समाया रहता है,
पिता के ह्रदय में.
दैनिक हिन्दुस्तान में प्रकाशित
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