snehi
रविवार, 13 मार्च 2011
मैंने तुम्हें
पाकर खोया
और खोकर भी पा लिया.
पर मैं
समझ नहीं पा रहा
मैंने तुम्हें
कितना खोया
और कितना पाया.
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
नई पोस्ट
पुरानी पोस्ट
मुख्यपृष्ठ
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
हिन्दी में लिखिए
विजेट आपके ब्लॉग पर
ब्लॉग आर्काइव
▼
2011
(8)
►
जुलाई
(7)
▼
मार्च
(1)
मैंने तुम्हें पाकर खोया और खोकर भी पा लिया. पर म...
►
2010
(9)
►
सितंबर
(1)
►
जुलाई
(1)
►
अप्रैल
(2)
►
मार्च
(5)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें