बुधवार, 17 मार्च 2010

कलाकार चाहे किसी भी विधा से सम्बन्ध रखता हो, लेकिन हर कलाकार यह चाहत जरुर रखता है की अबकी बार कुछ नया हो. वो विचारों के समुद्र में बार-बार डुबकियां लगाता है ओर अनंत गहरे से न जाने कैसे-कैसे मोती निकल लाता है. १६ मार्च, बुधवार की शाम को एक ऐसे ही कलाकार से मिला. श्रीमान कुलप्रीत सिंह. दैवयोग से हुई इस छोटी सी मुलाकात में बहुत कुछ जाना. कुलप्रीत जी एब्स्ट्रेक्ट आर्ट के कलाकार हैं. साथ ही कविता भी करते हैं. इस समय गवर्नमेंट म्यूजियम एंड आर्ट गैलरी, चंडीगढ़ में अपनी कलाकृतियों की प्रदर्शनी लगाई हुई है जो २० मार्च तक चलेगी. मेरे लिए यह पहला मौका था जब मैं किसी चित्रकार के मुख से अपनी पेंटिंग्स के बारे में सुन रहा था.
                  सच में पेंटिंग्स सुंदर न होते हुए भी इतनी सुंदर हैं की उनके सामने खड़ा होकर बस देखते रहने का ही मन करता है.
                  मैंने पूछा - क्या आप इसी तरह के ही चित्र बनाते हैं?
                  जनाब ने किसे शायर के शब्दों में अपने शब्द सजाकर जो उत्तर दिया, सीधा मन में उतर गया. शायराना अंदाज़ में बोले -
                             "विन्ची, पिकासो, घोघ ने जो छोड़ा कुछ ना
                             तो इसमें मेरी खता क्या है!
                             इसके अलावा बनाया जो कुछ भी
                             लोग कहते हैं की ये देखा सा है."
                 कुलप्रीत जी कहते हैं - "मैं किसी पेंटिंग के लिए कोई पूर्वयोजना नहीं बनाता. जब भी कुछ बनाने बैठता हूँ, बस बनाता  हूँ, ये नहीं सोचता की बनेगा क्या. मेरी पेंटिंग्स में मेरे सपने समाये रहते हैं. सपनों में खुद को जिस रूप में देखा, वो रूप कागज़ या केनवास पर उतर आता है."
                जब हम सपने देखते हैं तो अवचेतन मन से स्थिति को अनुभव कर रहे होते हैं. उन्ही अनुभवों, भावनाओं को कुलप्रीत जी कागज़ पर उतर लाये हैं. उनके चित्रों में चेहरों पर भाव नहीं हैं लेकिन भंगिमाएं सभी भावों को व्यक्त कर देती हैं. वो कहते हैं की वो प्रकृति को उसके होने पर कमेन्ट देते हैं.
               उनकी कला की कुछ झलकियाँ आपके सामने हैं....

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